Description: I was suddenly diagnosed diabetes with 289/447 reading, all of a sudden. My doctor and everybody was shocked.
I just refused allopathic treatment and went to my Naturopath guide, Shri Ashok Kashive ji, thanks to my wife who knew him.
He guided me with a prescription of "What to eat and what not to eat" and I just recovered in a few days.
Its now 18 months and I am living fine. Yes, I follow the naturopathic advice of food and I am without any medicine.
I am detailing here-under what I followed and some other useful materials, that can help others.
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I was suddenly diagnosed diabetes with 289/447 reading, all of a sudden. My doctor and everybody was shocked.
Doctor started giving me a long prescription of medicine. I just refused and went to my Naturopath guide, Shri Ashok Kashive ji, thanks to my wife who knew him.
He guided me with a prescription of "What to eat and what not to eat" and I just recovered in a few days. Its now 18 months and I am living fine.
Yes, I follow the naturopathic advice of food and I am without any medicine.
I... moreI was suddenly diagnosed diabetes with 289/447 reading, all of a sudden. My doctor and everybody was shocked.
Doctor started giving me a long prescription of medicine. I just refused and went to my Naturopath guide, Shri Ashok Kashive ji, thanks to my wife who knew him.
He guided me with a prescription of "What to eat and what not to eat" and I just recovered in a few days. Its now 18 months and I am living fine.
Yes, I follow the naturopathic advice of food and I am without any medicine.
I am detailing here-under what I followed and some other useful materials, that can help others.
You are welcome to try this safe method. All you need is self-confidence, and like me, you will gain health & happiness.
I have seen others follow this simple regime to health and happiness.
If you insist on continuing your medicine, you may do that. You will automatically reduce and stop the medicine as the levels improve and become normal.
In this video: https://youtu.be/pE7L6xdUlek
Dr S Vijayaraghavan talks openly about Diabetes and how one can treat and the Fraudulent activities behind it...
I applied the following method:
Yes, this is how, I did it. Yes, this is my own personal, live experience:
Start the day by taking 200 ml (1 glass) of juice of White Pumpkin ( सफेद पेठा).
No Wheat (Atta), Rice, Daal, Milk, Salt, Sugar, Cooked vegetables.
Follow the above routine for one week. This will control sugar levels.
Second week: Add boiled potato in breakfast salad. Add boiled corn in dinner salad.
Now, the sugar level will have stabilized to normal.
Third week: Take roti made of Ragi atta at 1 time with vegetable of your choice, cooked with half spoon of Mustard oil. Avoid masala.
Take सैन्दा नमक in place of Normal Salt.
Stop taking milk and all milk products. You will be fine and free of Diabetes.
Exercise: Walk in the morning and evening is helpful.
Walk as much as you can, comfortably, will help. It's not a must but helps. No need to tire yourself.
Additional very important suggestions that should be followed for good results:
1. Drink water of a coconut daily, especially if you have excess acidity. This will replace one food.
2. Take water based anema daily to ensure clean bowels.
3. Exercise is good but not a must. However, a simple walk for 10 to 20 minutes can be of help, if you can do it.
IN the next post, I am reproducing the Interview of Naturopath Mr. Arun Sharma who explains the whole system very well. I invite a volunteer to translate it to English and other languages for the benefit of many more.
I wish you the best health and happiness in life. You are welcome to share your experience.
You are welcome to contact Shri Ashok Kashive ji for his guidance on his whatsapp cell: +91-97115-02857 (Please call him only during the day - the best is to leave a message on whatsapp and request for a telephonic discussion. He is a wonderfully helpful person).
Interview worth reading. Gives the basics of Naturopathy, clearly.
'शरीर का नहीं, अपनी आदतों का चेकअप कराएं'
-प्राकृतिक चिकित्सक अरुण शर्मा
In reference to Health Check-ups
"Don't Check your Body, Check your Habits"
-Nature Cure Expert Arun Sharma
प्राकृतिक चिकित्सा के सबसे बड़े प्रचारकों में से... moreInterview worth reading. Gives the basics of Naturopathy, clearly.
'शरीर का नहीं, अपनी आदतों का चेकअप कराएं'
-प्राकृतिक चिकित्सक अरुण शर्मा
In reference to Health Check-ups
"Don't Check your Body, Check your Habits"
-Nature Cure Expert Arun Sharma
प्राकृतिक चिकित्सा के सबसे बड़े प्रचारकों में से एक अरुण शर्मा पिछले 47 साल से इसकी प्रैक्टिस कर रहे हैं। वह 76 बरस के हैं लेकिन उनकी सेहत युवाओं सरीखी है। प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली उनके खून में है। उनके दादा आचार्य लक्ष्मण शर्मा भारत में प्राकृतिक चिकित्सा के जनक माने जाते हैं। बचपन से ही उन्होंने अपने दादा और पिता आचार्य गणेश शर्मा से इसकी बारीकियां सीखी हैं। सन 1986 से अपने परिवार के साथ एरिजोना, अमेरिका में रह रहे हैं। भारत और अमेरिका, दोनों देशों में सैकड़ों प्रशिक्षण शिविर चला चुके हैं। उन्होंने बड़ी तादाद में गंभीर मरीजों को तंदुरुस्त किया है। अब तक करीब 45,000 (15,000 विदेशी) लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा का प्रशिक्षण और इलाज दिया है। इलाज उसी का करते हैं जो इसकी ट्रेनिंग भी ले। उनका मकसद लोगों को खुद अपना इलाज करने लायक बनाना है। मेडिकल इमरजेंसी, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों, सर्जरी, वैक्सीनेशन आदि पर उनके विचारों से आप भले ही सहमत न हों, पर उनकी ज्यादातर बातें हमें अपनी बनी-बनाई धारणाओं पर फिर से सोचने के लिए मजबूर तो करती ही हैं। इन दिनों प्रशिक्षण शिविरों के सिलसिले में अरुण शर्मा भारत आए हुए हैं। राजेश मित्तल ने नई दिल्ली में सात-दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने के बाद उनसे लंबी बातचीत की। पेश है इसी बातचीत के खास हिस्से:
Q. नेचुरोपैथी का मूल सिद्धांत क्या है?
A. हम नेचुरोपैथी नहीं, नेचर क्योर कहते हैं। पैथी कहने से फोकस बीमारी और उसके लक्षणों पर हो जाता है जबकि नेचर क्योर में फोकस प्राकृतिक जीवन शैली अपनाने पर होता है। दरअसल यह इलाज पद्धति नहीं, बल्कि जीवन पद्धति है। सही जीवन शैली अपनाने से इंसान तंदुरुस्त रहता है। अगर बीमार हो तो स्वस्थ हो जाता है। हमारा मानना है, हर जीव के शरीर में खुद को स्वस्थ करने की क्षमता कुदरत ने दी हुई है। गलत खानपान और गलत जीवन शैली से बीमारियां होती हैं। हम अपना खाना-पीना और गलत आदतें सुधार लें तो जल्दी ही स्वस्थ हो सकते हैं लेकिन इसमें मेहनत लगती है, मन को काबू में करना पड़ता है। इसलिए हम आसान रास्ता चुनते हैं। दवाएं खाकर अपना गुजारा चलाते रहते हैं।
Q. प्राकृतिक चिकित्सा से छोटी-मोटी बीमारियां ठीक होना तो समझ आता है लेकिन आप अपने सात-दिवसीय ट्रेनिंग कैंप में आनेवाले लोगों को तमाम दवाएं छोड़कर आने की सलाह देते हैं। इनमें हार्ट, किडनी, बीपी, अस्थमा, शुगर आदि के मरीज भी होते हैं। क्या आप ज्यादा खतरा मोल नहीं ले रहे?
A. खतरा तो वे लोग उठा रहे हैं जो अंग्रेजी दवाएं लेते हैं। जिन बीमारियों का आपने नाम लिया, इनका इलाज एलोपैथी में है ही नहीं। वे तो बस डिज़ीज़ मैनेज करते हैं, लक्षणों में कुछ राहत दिलाते हैं, पर इस चक्कर में दूसरी बड़ी बीमारियां दे देते हैं। ऐसी तमाम बीमारियां प्राकृतिक चिकित्सा में ठीक हो जाती हैं। आपने खुद कैंप में देखा है कि गंभीर बीमारियों के मरीजों में शुरू में दवाएं छोड़ने में कुछ हिचकिचाहट थी। उन्हें डर था कि कहीं तबीयत बिगड़ तो नहीं जाएगी। लेकिन कैंप खत्म होते-होते जैसे-जैसे उनकी सेहत में सुधार आता चला गया, प्राकृतिक चिकित्सा पर उनका भरोसा बढ़ता चला गया। अब वे घर जाने के बाद भी अगर यहां बताई गई रुटीन का लगातार सख्ती से पालन करते रहेंगे तो उन्हें जिंदगी भर दवाएं खानी नहीं पड़ेंगी।
Q. कैंप में तो सबकी देखा-देखी सख्त रुटीन का पालन हो जाता है, पर घर आकर इंसान उसी पुराने ढर्रे पर धीरे-धीरे लौट जाता है। वही रुटीन बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती है। कोई उपाय बताएंगे?
A. यह सच है कि ज्यादातर लोग अचानक से अपनी जीवन शैली को बदल नहीं पाते। जो आदतें बरसों से पड़ी हुई हैं, वे आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं। लोग अपनी पुराने आदतों में वापस चले जाते हैं। ऐसे मरीजों को ठीक कर पाना मुश्किल हो जाता है। सच यह भी है कि अगर इंसान को यह बात अच्छी तरह समझ में आ जाए, अगर उसके दिमाग में बैठ जाए कि मेरा हित इसी में है, बेमन से खाई जा रही ढेर सारी दवाओं से ताउम्र छुटकारा मिल जाएगा तो इंसान कुछ समय में धीरे-धीरे बदल जाता है। इसका सबसे बड़ा तरीका यही है कि हम मरीज से या छात्र से दोस्ती करते हैं। फिर हम उसके भलाई के लिए जो कुछ कहेंगे, वह बात उसकी अंतरात्मा को छू जाएगी। ऐसा संपर्क एक आचार्य और शिष्य के बीच में हो तो उसकी दिनचर्या तुरंत तो नहीं लेकिन कुछ दिन में बदल जाएगी।
Q. मौजूदा समय में क्या ऐसा हो पाता है?
A. ऐसे कई लोग थे जो सख्त रुटीन को नहीं अपना सके और अलग हो गए। बाद में लेकिन उन्हें अहसास हुआ कि वे गलत कर रहे हैं। फिर वे संपर्क में आए और कहा कि मैं फिर से इस रास्ते में वापस आना चाहता हूं। लोग खुद-ब-खुद इसे अपनाते हैं। हम अगर सच्चे दिल से किसी से रिश्ता रखें तो वह कभी न कभी जरूर हमारे पास वापस आता है।
Q. कोई और तरीका?
A. इसको फैशन बना लें। गर्व से कहें कि हम डॉक्टर के पास नहीं जाते, दवाएं नहीं खाते, नेचर क्योर करते हैं। इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी। अगर किसी ने एक चीज की और वह कामयाब हो गई तो सभी उसे करने लगते हैं।
Q. सच कहें तो एकबारगी विश्वास नहीं होता कि छोटी से लेकर बड़ी - तमाम बीमारियों का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा में मुमकिन है। इसकी कुछ सीमाएं तो होंगी ही। ज्यादा गंभीर बीमारियों के मरीज आप अपने कैंप में नहीं लेते होंगे?
A. ऐसी कोई खास शर्त नहीं होती। वैसे जिसका डायलसिस ज्यादा हुआ रहता है, उसे हम अमूमन नहीं लेते। उसे हम नेचर क्योर के कुछ ऐसे टिप्स बता देते हैं जिन्हें वह घर पर ही आराम से कर सके। ऐसे मरीजों के भी इलाज में दिक्कत आती है जिनके शरीर में पहले ही काफी छेड़छाड़ हो चुकी हो। मसलन, लिवर का ऑपरेशन हो चुका हो या और कुछ। आपने सीमाओं के बारे में पूछा था। एक सीमा यह है कि प्राकृतिक चिकित्सा में हर बीमारी ठीक हो सकती है, लेकिन हर मरीज ठीक नहीं हो सकता। अगर मरीज अपनी गलत आदतें छोड़ने को तैयार नहीं है तो उसका कुछ नहीं हो सकता। दूसरी सीमा यह है कि हम सर्जरी नहीं कर सकते। वैसे हम सर्जरी की जरूरत भी नहीं समझते। तीसरी यह कि अगर मरीज प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-साथ कोई दूसरी चिकित्सा प्रणाली भी जारी रखता है तो यह काम नहीं करती है। एक बार डायबीटीज टाइप 1 का मरीज कैंप के दौरान साथ में इंसुलिन रखना चाहता था। मना कर दिया। दवा के साथ यह इलाज चल नहीं सकता।
Q. कैंप के दौरान कभी कोई केस बिगड़ा भी है?
A. देखिए हम मौत को तो रोक नहीं सकते। एक किडनी पेशंट हमारे कैंप में आई थीं। कैंप में हालत में सुधार हुआ था। कैंप से निकलने के 15-20 दिन बाद वह मर गईं।
Q. एड्स में भी प्राकृतिक चिकित्सा काम करती है?
A. एड्स में मरीज की हालत बेहद बुरी हो जाती है। दरअसल ढेर सारी दवाएं देकर मरीज अपने अंदर बड़ी जंग छेड़ लेता है। इससे बीमारी से लड़ने की शरीर की अपना क्षमता काफी कम हो जाता है। हमने एड्स के एक मरीज को भी नेचर क्योर दिया है। हालांकि वह कुछ दिनों बाद मर गए, लेकिन मरते समय उन्हें तकलीफ नहीं हुई। वैसे एड्स तो क्या, किसी भी बीमारी का इलाज नेचर क्योर में नहीं है क्योंकि हम बीमारी का इलाज तो करते नहीं। हम सही जीवन शैली सिखाते हैं जिससे बीमारी अपने आप भाग जाती है। स्वास्थ्य की कमी को रोग कहते हैं और स्वास्थ्य की वृद्धि से रोग दूर हो जाता है।
Q. कैंसर को आप किस तरह देखते हैं?
A. मेरे हिसाब से अगर सबसे सुरक्षित कोई बीमारी है तो वह कैंसर है। क्योंकि अगर ट्यूमर बन जाए तो ट्यूमर का लक्ष्य होता है कि शरीर के अंदर जितने टॉक्सिन हैं, उन्हें खींचकर ट्यूमर के अंदर बंद कर दिया जाए। नेचर क्योर का इसमें यही रोल होता है कि वह जीवन शैली को दुरुस्त करे। फिर ट्यूमर में जो नए सेल्स बनेंगे, वे कैंसर-मुक्त होते हैं। इस तरह धीरे-धीरे तमाम पुराने खराब सेल्स को बदलकर नए सही सेल्स बनते जाते हैं और मरीज की जान बच जाती है।
Q. इसमें कितना समय लगता है?
A. यह निर्भर करता है कि कैंसर किस तरह का है। अगर आप बायोप्सी के फौरन बाद यह इलाज शुरू करते हैं तो मुमकिन है कि मरीज एक साल में ठीक हो जाए। मेरे पास तीन ऐसे केस भी आए जो बायोप्सी से पहले आ गए। उनका ट्यूमर एक महीने में ही गायब हो गया। हां, लिवर में कैंसर के कुछ मरीज हैं जो ठीक नहीं हुए। साथ ही अगर किसी ने कीमोथेरपी करवा ली है तो फिर नेचर क्योर में उसका इलाज नहीं हो पाता।
Q. सक्सेस रेट क्या है?
A. नेचर क्योर में हम बताते भी नहीं कि हमने कैंसर का या डायबीटीज का या किसी बीमारी का इलाज किया है। दरअसल हम बीमारी का इलाज करते ही नहीं। हम बीमारी मानते ही नहीं। लोग डॉक्टर से रिपोर्ट लेकर आते हैं जिसमें लिखा होता है कि उन्हें डायबीटीज है। फिर जब हमारे यहां इलाज कराते हैं और कुछ दिनों के बाद टेस्ट करवाते हैं तो वह गायब रहता है। हमें तो खुद पता भी नहीं होता कि बीमारी कौन-सी है। हम तो बस दिनचर्या सुधारकर शरीर को खुद-ब-खुद स्वस्थ होने में मदद करते हैं। इलाज के लिए सिर्फ कुदरती तरीके अपनाते हैं।
Q. अगर किसी को एंजियोप्लास्ट्री या ओपन हार्ट सर्जरी करवानी हो तो क्या वह नेचर क्योर से इससे बच सकता है?
A. जरूर बच सकता है। मेरा अनुभव यही है कि शरीर के सभी ब्लॉकेज को 15 दिन के भीतर ठीक किया जा सकता है।
Q. गंभीर चोट लगने जैसी मेडिकल इमरजेंसी में तो मॉडर्न मेडिकल सिस्टम की शरण लेनी ही पड़ती है?
A. नहीं, कोई जरूरत नहीं। एक बार बस से उतरते वक्त मेरा सर फट गया था। मैंने खुले जख्म पर बस गीला कपड़ा रखा। खून बंद हो गया। कुछ दिनों में बिलकुल ठीक हो गया। टेटनस के इंजेक्शन की भी कोई जरूरत नहीं होती। आपको लग सकता है कि मैं खतरा मोल ले रहा हूं लेकिन अगर मेरा या मेरे परिवार का केस होगा तो मैं अस्पताल नहीं जाऊंगा। कुदरती तरीकों से ही इलाज करूंगा।
Q. नेचर क्योर खानदानी बीमारी में यानी जो बीमारी जींस में मिली है, उसमें भी काम करती है?
A. मेरे पास एक बार चार महीने का एक बच्चा आया। उसे पीलिया था। उसकी दिनचर्या क्या खराब हुई होगी। उसने कहां बाहर का खाना खाया होगा। वह RH निगेटिव था। उसके पिताजी ने बताया कि उसके पूरे शरीर का ब्लड ट्रांसप्लांट कराने के लिए कहा गया है। उन्होंने साथ ही यह भी बताया कि मेरे घर में पहले भी एक लड़का था जिसको यही बीमारी थी। उसका भी ब्लड ट्रांसप्लांट कराया गया था लेकिन वह मर गया। मेरे घर में सिर्फ लड़कियां ही जन्म लेती हैं। बहुत मुश्किल से लड़का हुआ है। मैं नहीं चाहता कि इसको कुछ हो जाए। अगर आपके पास कोई इलाज हो तो बताएं। मैंने उन्हे बस दो दिन का इलाज बताया। दो दिन बाद मैं जब क्लास में था तो वह आते हए दिखे। उनकी आंखों में आंसू थे और साथ में 10-15 लोग और थे। मुझे अनहोनी की आशंका होने लगी। लेकिन उनके हाथ में माला थी और फल का बक्सा था। उन्होंने कहा कि आपने मेरे कुल के वृक्ष को बचा लिया। दो दिन में ही वह RH पॉजिटिव हो गया। जिस डॉक्टर ने ब्लड ट्रांसप्लांट के लिए कहा था, उनके साथ वह भी थे। डॉक्टर ने पूछा कि यह कैसे मुमकिन हुआ। मैंने कहा कि मां और बेटे को सूरज की रोशनी में अधिक समय तक रखने और नारियल पानी से ऐसा हो पाया।
Q. बच्चों के टीकाकरण (वैक्सीनेशन) पर आपकी क्या राय है?
A. मैं इसके खिलाफ हूं। साइंस ने खुद बता दिया है इस बारे में। हर दवा या टीके के पीछे उसका साइड इफेक्ट लिखा होता है। आपको उदाहरण बताता हूं। अगर घर में आपका बच्चा बड़ा हो गया है और वह आपका कहना नहीं मानता, तोड़-फोड़ करता है तो आप उसे काबू करने के लिए बाहर से गुंडा बुला लेते हैं। वह आपके ही घर में रहता है। आपके बच्चे को मारता है। आप पर हुक्म भी चलाता है। कभी बोलेगा, चाय लाओ। कभी पानी मांगेगा। कभी कहेगा कि 50 हजार रुपये लाओ।। इससे क्या होगा। पहले तो आप अपनी आंखों के सामने अपने बच्चे को पिटते देखकर दुखी होंगे। दूसरा, आप अपने ऊपर हुक्म को भी बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। मतलब, जब शरीर खुद-व-खुद बीमारी को ठीक करने में समर्थ है तो उसे ठीक करने के लिए बाहर से गुंडा बुलाकर हम खुद अपने शरीर के खिलाफ जंग छेड़ने की जरूरत ही क्या है। प्राकृ़तिक चिकित्सा का मूल सिद्धांत ही यही है कि हर जीव खुद-ब-खुद ठीक होने में और अपनी सेहत की रक्षा करने में समर्थ है। इस सामर्थ्य पर भरोसा करके जो सिस्टम बनाया है, वह है प्राकृतिक चिकित्सा।
Q. आप अमेरिका में रहते हैं। वहां तो वैक्सीनेशन अनिवार्य है। अमेरिका में पैदा हुए आपके पोते-पोतियों का तो वैक्सीनेशन हुआ ही होगा?
A. नहीं, हमने रिलिजियस वेवर लेटर (धार्मिक कारणों से छूट की अर्जी) लिखकर दे दिया था। हां, एक बहू नहीं तैयार नहीं हुई तो उसे हमने छूट दे दी।
Q. अमेरिका में कायदे-कानून काफी सख्त हैं। वहां नेचर क्योर के जरिए इलाज करने की इजाजत नहीं होगी। वहां रहकर आप किस तरह प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचार-प्रसार कर पाते हैं?
A. शुरू में वाकई दिक्कत हुई। मुझे बताया गया कि यहां आपने अगर प्राकृतिक चिकित्सा से लोगों का इलाज किया तो आपको भारत वापस भेज दिया जाएगा। मैंने वकील से सलाह ली। उसने मुझसे 3 सवाल पूछेः 1.क्या आप मरीज को बताते हो कि उसे क्या बीमारी है? 2.क्या आप मरीज को कोई मेडिकल टेस्ट लिखते हो? 3.क्या आप मरीज को कोई दवा देते हो या लिखते हो? तीनों सवालों के जवाब में मैंने 'न" कहा। उसने कहा, फिर आप इसकी प्रैक्टिस कर सकते हो। दरअसल मैं डॉक्टर नहीं हूं। बीमारी का इलाज नहीं करता, मरीज का इलाज करता हूं। बीमारी को ना तो हम पहचानते हैं, ना ही उसका इलाज करते हैं और ना ही कोई दवा दी जाती है। यहां स्वास्थ्य बढ़ाने पर फोकस रहता है। कानूनी पचड़ों से बचने के लिए हम आपने पास आनेवाले हर शख्स से एक फॉर्म पर साइन करवा लेते हैं। इस पर लिखा रहता हैः मैं यहां इलाज कराने नहीं आया हूं। मैं स्वस्थ जीवन शैली सीखने आया हूं।
Q. आप कहते हैं कि प्राकृतिक इलाज करते हैं। साग-सब्जी खिलाकर लोगों को ठीक करते हैं। लेकिन आजकल साग-सब्जियां भी जहरीली खादों, कैमिकल स्प्रे और सीवर के पानी से उगाई जाती हैं। क्या कहेंगे इस बारे में?
A. आपने कभी कमल के फूल को देखा है? वह कीचड़ में उगता है। अगर पानी में जहर है तो सबसे पहले पौधा ही मरेगा। पौधा उस पानी से वही चीज लेता है जो उसके खुद के लिए लाभदायक है। फिर भी दिक्कतें तो हैं। जहां तक मुमकिन हो, ऑर्गेनिक सब्जियां लें या फिर अपनी छत-बालकनी में खुद सब्जियां उगाएं। अंकुरित चने या मूंग का सेवन करें।
Q. नेचर क्योर में भी क्या कोई साइड इफेक्ट भी होता है?
A. (हंसते हुए) साइड इफेक्ट यही होता है कि स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है। शरीर और शुद्ध हो जाता है। इसमें बस दिक्कत यही है कि बहुत ज्यादा प्राकृतिक इलाज से शरीर काफी शुद्ध हो जाता है। उसमें अगर थोड़ा-सा भी उल्लंघन हो जाए तो बहुत ज्यादा रिऐक्शन करता है। शुद्ध शरीर होने पर एक कप एक्स्ट्रा चाय भी अपना असर दिखा देती है। हालांकि यह ठीक भी जल्दी हो जाता है।
Q. कई बार घर से बाहर भी खाना पड़ जाता है और हम अपनी दिनचर्या को सुचारू नहीं रख पाते। इसके लिए क्या कोई उपाय है?
A. मैं अपने शरीर को हफ्ते में एक दिन छूट दे देता हूं। उस दिन जो मन करता है, खा लेता हूं। लेकिन साथ में एक काम जरूर करता हूं। वह यह कि जो भी खाता हूं, उसे खूब चबाता हूं। ज्यादा चबाने से यह होता है कि अगर आपके खाने में किसी ने जहर भी डाल दिया हो तो ज्यादा देर तक चबाने से आपको उलटी हो जाएगी और आप उसे फेंक दोगे। आप इतना भी खुद को नाजुक मत बनाओ कि दुनिया में रहने लायक ही न रहो। हां, अगर कभी एक-दो दिन बाहर खाना पड़ जाता है तो फिर अगले दिन फास्ट रख लेता हूं जिससे उसकी भरपाई हो जाती है।
Q. आजकल प्राकृतिक चिकित्सा के भी कई ट्रीटमेंट काफी महंगे होकर आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए हैं?
A. आप सही कह रहे हैं। जब प्राकृतिक चिकित्सा संस्थानों में सौना बाथ, स्टीम बाथ जैसे महंगे उपकरण रखे जाएंगे तो लोगों से भी उनकी महंगी फीस वसूली जाएगी। हम इन सबके पक्ष में नहीं हैं। इनमें पसीना निकालने के लिए शरीर को बहुत ज्यादा गर्मी झेलनी पड़ती है जिससे नसें कमजोर होती हैं। हम जो ट्रेनिंग देते हैं, उसे हर आदमी अपने घर पर खुद कर सकता है। हमारा तरीका कुदरती, आसान और बेहद सस्ता है। जहां तक हमारे प्रशिक्षण शिविर की बात है तो दिल्ली में लोगों को ठहराने पर ही काफी खर्चा हो जाता है। हमारा अगला प्रशिक्षण शिविर पुलाची, कोयम्बटूर में है। वहां हम लगभग फ्री ट्रेनिंग देते हैं। हमारी वेबसाइट www.imanah.com से आपको पूरी जानकारी मिल सकती है।
Q. आप कुदरती इलाज पर जोर देते हैं, पर आपके इलाज का एक अहम हिस्सा टोना (मिनी एनिमा) है जो आंतों में रुके मल को बाहर निकालता है। यह तो कुदरती नहीं है?
A. सही कह रहे हैं आप, लेकिन जब हम गैर-कुदरती खाना कई बार खा लेते हैं तो हमें अपनी आंतों की सफाई के लिए टोना जैसे गैर-कुदरती तरीके की शरण लेनी पड़ती है। हम गलत खानपान और आदतें पूरी तरह छोड़ दें तो टोना लेने की कोई जरूरत नहीं रहेगी। और फिर हमारा टोना अहिसंक होता है। इसमें सादे पानी का इस्तेमाल करते हैं और वह भी कम मात्रा में, करीब एक गिलास। कुछ लोग मशीन से आंतों की धुलाई-सफाई करा लेते हैं। इससे आंतें कमजोर हो जाती हैं।
Q. आप दूध और दूध से बनी चीजें खाने के खिलाफ हैं लेकिन हमारे यहां तो सदियों से दूध को संपूर्ण आहार माना जाता रहा है?
A. हम दूध के खिलाफ हैं तो इसकी वजहें कई हैं। इसका स्रोत पेड़-पौधे न होकर जानवर हैं। दूसरे, कोई भी दूसरा जानवर बड़े होकर दूध नहीं पीता और किसी दूसरे जानवर का दूध नहीं पीता। तो इंसान क्यों पिए, बछड़े का दूध क्यों छीने? फिर दमा-एग्जिमा जैसी बीमारियों की वजह दूध है। जब दूध से बेहतर विकल्प हमारे पास मौजूद हैं तो हम दूध क्यों पिएं।
Q. दूध और उससे बने मक्खन, पनीर नहीं खाएंगे, मांस भी नहीं खाएंगे तो शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाएगी?
A. यह गलत धारणा है। नारियल, पालक, अंकुरित मूंग आदि में पर्याप्त प्रोटीन होता है।
Q. ऐक्यूपंक्चर और ऐक्यूप्रैशर के बारे में आपका क्या कहना है
A. ये भी अधूरी चिकित्सा प्रणाली हैं। ये बीमारी की जड़ तक नहीं पहुंचतीं। बीमारी की वजह दूर करने पर काम नहीं करतीं। सिर्फ दर्द से राहत दिलाती हैं। ऐसे में बीमारी बार-बार लौटकर आती है।
Q. प्राकृतिक चिकित्सा को जानना-समझना हो तो कौन-सी एक किताब पढ़ने की सलाह देंगे?
A. मेरे दादाजी लक्ष्मण शर्मा की अंग्रेजी में लिखी किताब हैः प्रैक्टिकल नेचर क्योर।
प्राकृतिक चिकित्सा के 15 सूत्र
1. जितनी मेहनत, उतना खाना
2. पानी प्यास लगने पर ही पिएं। दिन भर में 3, 4 लीटर या सुबह 3, 4 गिलास पीना मुनासिब नहीं। इससे किडनियों पर फालतू लोड पड़ता है। पानी धीरे-धीरे पिएं।
3. घड़ी की सुइयों के हिसाब से ना खाएं। जब घंटी पेट में बजे, तब खाए। यानी खाना भूख लगने पर ही खाएं और ज्यादा खाना नहीं, ज्यादा चबाना है।
4. एक वक्त पर एक ही फल खाएं, सेब 2,3 खा सकते हैं, पर एक सेब, एक केला नहीं।
5. फल एक वक्त के खाने की जगह खाएं। खाने से पहले, खाने के बाद या खाने के साथ न खाएं।
6. कच्ची सब्जियों का सलाद रोज एक बार खाना जरूरी है। यह भी खाने से पहले, खाने के बाद या खाने के साथ न खाएं। सलाद एक वक्त के खाने के तौर पर खाएं। सलाद में अलग-अलग कच्ची सब्जियां मिलाकर ले सकते हैं।
7. सलाद में न तो नीबू डालें और न ही नमक। ये दोनों चीजें सलाद की सेहत बढ़ाने वाली केमिस्ट्री में दखल पैदा करती हैं। सलाद यानी सब्जियां ऐल्कलाइन होती हैं, नीबू और नमक एसिड।
8. सब्जियाें के साथ फल न खाएं और न ही फल के साथ सब्जियां। कारण, फल एसिडिक होते हैं और सब्जियां ऐल्कलाइन। दोनों साथ खाने से पचने में दिक्कत होती है।
9. ऐल्कलाइन चीजें ज्यादा खाएं, एसिडिक चीजें कम। शरीर में एसिड ज्यादा हो तो यूरिक एसिड बढ़ता है, स्किन इंफेक्शन हेता है, और तमाम तरह की बीमारियां होती हैं।
10. पका हुआ खाना दिन में एक ही बार खाएं, लंच में या डिनर में। नाश्ता हल्का रखें। इसमें फल खाएं या सलाद। दिन की शुरुआत ऐल्कलाइन पेय से करें जैसे नारियल पानी, सफेद पेठे का रस आदि।
11. हफ्ते में एक दिन चीट डे रखें। यह दिन रविवार भी हो सकता है। इस दिन कुछ भी खा सकते हैं। पर अगले दिन उपवास जरूर रखें। फास्ट आफ्टर फीस्ट।
12. बीमारी का इलाज न करें, बस सेहत बढ़ा दें, शरीर बीमारी का इलाज खुद-ब-खुद कर लेगा।
13. सेहत बढ़ाने के तरीके हैं: उपवास, लगभग नंगे बदन पर सूरज की रोशनी रोज सुबह 20 मिनट तक लेना, दौड़ना, योगासन, प्राणायाम, ध्यान, टोना (मिनी एनिमा), प्रभावित अंग पर 20 मिनट तक गीली पट्टी रखना, फल-सब्जियां खाना, पर्याप्त आराम और नींद, अच्छे विचार और रचनात्मक व्यस्तता।
14. तमाम डॉक्टर, अस्पताल, टेस्ट, इलाज, दवाएं, विटामिन आदि सप्लिमेंट्स उनके लिए हैं जिनका अपने तन-मन कोई कंट्रोल नहीं हैं, जो सैर-कसरत नहीं करना चाहते, चटपटी लेकिन नुकसानदायक चीजें खाना जारी रखना चाहते हैं।